Wednesday, February 19, 2020

सुशीला टाकभौरे की कविता स्त्री । FYBA Compulsory Sem II

क स्त्री
जब भी कोई कोशिश करती है
लिखने की बोलने की समझने की
सदा भयभीत-सी रहती है
मानो पहरेदारी करता हुआ
कोई सिर पर सवार हो
पहरेदार
जैसे एक मजदूर औरत के लिए
ठेेकेदार
या खरीदी संपत्ति के लिए
चौकीदार
वह सोचती है लिखते समय कलम को झुकाकर
बोलते समय बात को संभाल ले
और समझने के लिए
सबके दृष्टिकोण से देखे
क्योंकि वह एक स्त्री है!
       ------------------ सुशीला टाकभौरे

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