Tuesday, October 26, 2021

शक्ति और क्षमा कविता FYBA Comp

 क्षमा, दया, तप, त्याग, मनोबल

सबका लिया सहारा

पर नर व्याघ्र सुयोधन तुमसे

कहो, कहाँ, कब हारा?


क्षमाशील हो रिपु-समक्ष

तुम हुये विनत जितना ही

दुष्ट कौरवों ने तुमको

कायर समझा उतना ही।


अत्याचार सहन करने का

कुफल यही होता है

पौरुष का आतंक मनुज

कोमल होकर खोता है।


क्षमा शोभती उस भुजंग को

जिसके पास गरल हो

उसको क्या जो दंतहीन

विषरहित, विनीत, सरल हो।


तीन दिवस तक पंथ मांगते

रघुपति सिन्धु किनारे,

बैठे पढ़ते रहे छन्द

अनुनय के प्यारे-प्यारे।


उत्तर में जब एक नाद भी

उठा नहीं सागर से

उठी अधीर धधक पौरुष की

आग राम के शर से।


सिन्धु देह धर त्राहि-त्राहि

करता आ गिरा शरण में

चरण पूज दासता ग्रहण की

बँधा मूढ़ बन्धन में।


सच पूछो, तो शर में ही

बसती है दीप्ति विनय की

सन्धि-वचन संपूज्य उसी का

जिसमें शक्ति विजय की।


सहनशीलता, क्षमा, दया को

तभी पूजता जग है

बल का दर्प चमकता उसके

पीछे जब जगमग है।


शक्ति और क्षमा 

प्रस्तुत कविता में रामधारी जी शक्ति और क्षमा के विषय में दर्शाते हैं। उनके अनुसार पांड़वों ने जब तक विनयपूर्वक अपना अधिकार माँगा गया तो उन्हें दुत्कार, छल मिला। उसने हर बार क्षमाशीलता का सहारा लिया परन्तु वह हर बार कायर कहलाए लेकिन जब उन्होंने शक्ति का सहारा लिया, तभी उन्हें अधिकार मिला

इसी प्रकार जब भगवान राम विनयपूर्वक समुद्र से रास्ता मांगते रहे तो  उसमें एक लहर भी नहीं जगी। कई दिनों तक उन्होंने इंतजार किया और समुद्र की दुष्टता को क्षमा किया परन्तु जब भी उसने उनकी बात अनदेखी, तो उन्हें शक्ति का सहारा लेना पड़ा। भयभीत समुद्र उनके पास चला आया।

अपने बात को स्पष्ट करने के लिए वह और भी उदाहरण देते हैं।


उनके अनुसार यदि मनुष्य अत्याचार सहता रहता है, तो अत्याचारी के अत्याचार बढ़ जाते हैं। उनके अनुसार अत्याचार सहते हुए हम अपने पौरुष को खो देते हैं। उस मनुष्य के पास क्षमा सुशोभित होती है, जिसके पास शक्ति होती है। ऐसे मनुष्य का संसार भी वरण करता है।

दिनकर एक ओजस्वी राष्ट्रभक्ति से अपनी कविताओं में विद्रोह तथा क्रांति के साथ ही श्रृंगार की कोमल भावनाओं को भी अभिव्यक्त करते थे। स्वतंत्रता के पूर्व उन्हें विद्रोही कवि कहा गया किंतु स्वतंत्रता के पश्चात इन्हें राष्ट्र कवि के रूप में जाना गया तो चलिए राष्ट्र कवियों में से एक प्रसिद्ध कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करने के लिए आगे बढ़ते हैं।


रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय (सामान्य)

नाम – रामधारी सिंह ‘दिनकर’

जन्म – 24 सितंबर 1908

जन्म स्थान – सिमरिया गांव बिहार

पिता – रवि सिंह (किसान)

माता – मनरूप देवी

मृत्यु – 24 अप्रैल 1974

मृत्यु स्थान – चेन्नई (राष्ट्रकवि दिनकर जी की जीवनी)

प्रारंभिक जीवन तथा बचपन

रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का जन्म 24 सितंबर 1908 को बिहार के सिमरिया गांव में हुआ उनके पिता रवि सिंह सामान्य किसान तथा उनकी माता मनरूप देवी थी। दिनकर के पिता की मृत्यु के समय वे मात्र 2 वर्ष के ही थे। पिता के गुजर जाने के बाद सभी भाई – बहनों की जिम्मेदारी उनकी माता पर आ गई

दिनकर की बाल्यावस्था तथा किशोरावस्था गांव में ही बीती, यहां दूर-दूर तक खेतों में हरियाली फैली हुई, आम के बगीचों का विस्तार तथा बांस के झुरमुट फैले हुए थे। प्रकृति का यह प्राकृतिक सौंदर्य दिनकर के मन को छू गया और शायद इसी कारण अपनी असलियत जिंदगानी के ठोसपन का उन पर ज्यादा प्रभाव पड़ा।

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