Tuesday, August 31, 2021

नये इलाके में - अरुण कमल

 

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इस नए बसते इलाके में

जहाँ रोज़ बन रहे हैं नये-नये मकान
मैं अक्सर रास्ता भूल जाता हूँ

धोखा दे जाते हैं पुराने निशान
खोजता हूँ ताकता पीपल का पेड़
खोजता हूँ ढहा हुआ घर
और ज़मीन का खाली टुकड़ा जहाँ से बाएँ
मुड़ना था मुझे
फिर दो मकान बाद बिना रंग वाले लोहे के फाटक का
घर था इकमंज़िला

और मैं हर बार एक घर पीछे
चल देता हूँ
या दो घर आगे ठकमकाता

यहाँ रोज़ कुछ बन रहा है
रोज़ कुछ घट रहा है
यहाँ स्मृति का भरोसा नहीं
एक ही दिन में पुरानी पड़ जाती है दुनिया
जैसे वसन्त का गया पतझड़ को लौटा हूँ
जैसे बैशाख का गया भादों को लौटा हूँ

अब यही उपाय कि हर दरवाज़ा खटखटाओ
और पूछो
क्या यही है वो घर?

समय बहुत कम है तुम्हारे पास
आ चला पानी ढहा आ रहा अकास
शायद पुकार ले कोई पहचाना ऊपर से देख कर

नये इलाके में
 रचनाकारअरुण कमल
 प्रकाशकवाणी प्रकाशन, नयी दिल्ली-110002
 वर्ष1996
 भाषाहिन्दी
 विषयकविता
 विधा
 पृष्ठ96
 ISBN81-7055-448-9
 विविधवर्ष 1998 में हिन्दी भाषा के लिये साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत

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