Wednesday, February 19, 2020

जड़ें कविता सर्वेश्वर दयाल सक्सेना । FYBA compulsory 2 semester

जड़ें कितनी गहरीं हैं
आँकोगी कैसे ?
फूल से ?
फल से?
छाया से?
उसका पता तो इसी से चलेगा
आकाश की कितनी
ऊँचाई हमने नापी है,
धरती पर कितनी दूर तक
बाँहें पसारी हैं।

जलहीन,सूखी,पथरीली,
ज़मीन पर खड़ा रहकर भी
जो हरा है
उसी की जड़ें गहरी हैं
वही सर्वाधिक प्यार से भरा है।

      सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ।

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Honoured by Mr.Atul Zende. DEPUTY COMMISSIONER OF POLICE (ZONE-III)

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